Shree 5 Navtanpuri Dham, Jamnagar (Gujarat)
पहले बीज उदे हुआ, पुरी जहा नौतन ।
सब पुरीयो में उत्तम, हुई जो धन धन ॥अनुप शहर मे अवतरित प्रकाश हिन्दुस्तानी ग्रन्थ मे महामति श्री प्राणनाथजी ने उक्त चौपाई के द्वा्रा श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म मे श्री ५ नवतनपुरी धाम का महत्व प्रकट किया है। तब से श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म के इतिहास मे नवतनपुरी की महिमा पावनकारी पुरी के रुप मे शोभायमान रही है। क्योंकि नवतनपुरी मे ही निजानंद संप्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ है। तारतम मंत्र तारतम सागर - श्री मुखवाणी - अवतरण का प्रारम्भ भी यही पर हुआ और इसी पुरी मे ही सदगुरु श्री देवचन्द्रजी ने जागनी महायज्ञ का प्रारम्भ किया, जो महामति श्री प्राणनाथजी के द्वारा देश - विदेशो मे फैला।
आमतौर पर तीर्थ भूमी के तीन लक्षण माने जाते है:-
१ जिस भूमी पर किसी महापुरुष का जन्म हुआ हो ।
२ महापुरुषो की कर्म भूमी हो, और
३ महापुरुषो की निर्वाण भूमी हो ।
नवतनपुरी धाम मे ये तीनो लक्षण विधमान है। यह पावन पुरी महामति श्री प्राणनाथजी की प्राकट्य भूमि है। आधसंस्थापक सदगुरु श्री देवचंद्रजी और महान प्रवर्तक महामति श्री जी की लीला भूमि है, और सदगुरु महाराज का धामगमन भी इसी पुण्यभूमि मे हुआ था। अत: श्री ५ नवतनपुरी धाम की अनन्त महिमा का नवतन वर्णन श्री कुलजम स्वरुप और बीतक ग्रन्थो मे मिल जाता है। जैसे :-
नौतनपुरी मां ए निध, सारी सनंधें गोताणी ।
निरखी गोतीने नेह करी, सहु मां संभलाणी ॥
धन धन पुरी नौतन, जे मां ए लीला थई ।
लीला बंने पाधरी, रास प्रकासे कही ॥ प्र.गु. ३१/१३-११२
श्री ५ पदमावतीपुरी धाम पन्ना मे अवतरीत श्री परीक्रमा ग्रन्थ मे श्री बुद्धजी की असीम महिमा का गोपनीय रहस्य मंगलाचरण मे बयान कराते हुये कहा गया है कि -
एते दिन त्रिलोक में हुती बुद्ध सुपन ।
सो बुद्धजी बुध जाग्रुत ले, प्रगते पुरी नौतन ॥ परि. प्र. २/१०
जागनी ब्रह्मांड की इन अनन्त लीलाओ को प्रत्यक्ष दर्शन करके स्वामी श्री लालदासजी ने श्री बीतक साहेब मे अनुपम वर्णन किया है। वे महामति जी के प्रदुर्भाव प्रसंग का वर्णन करते हुये श्री बीतक मे कहते है :-
हालार देश पुरी नौतन, उदर बाई धन ।
केशव ठाकुर पिता कहियत, तहा श्री राज प्रगटन ॥
इस तरह श्री ५ नवतनपुरी धाम का श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म परमपावन, अनन्य, नित्य, अखण्ड माहात्म्य का है।
प्रेम प्रणाम धर्म परायण सुंदरसाथजी ................
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Shree 5 Mahamangalpuri Dham, Surat. (Gujarat)
मंगलपुरी महिमा बडी, है सबका गुरुद्वार ।
चले जगावन साथ को, श्री प्राणनाथ भरतार ॥
सदगुरु श्री देवचंद्रजी महाराज के धामगमन के पश्चात महामति श्री प्राणनाथजी ने सुन्दरसाथ की जागनी के लिए महान धर्म – अभियान प्रारम्भ किया। वे दीव बन्दर, ठ्तठानगर, बसरा, मसकत, अब्बासी, नलिया आदि स्थानो मे जागनी करते हुए अपने धर्मप्रिय सुन्दरसाथ को संग लेकर वि. सं. १७२९ अषाढ क्रिष्ण १४ को महामंगलपुरी धाम, सूरत पहुंचे। वहा १७ माह तक रहकर वे वैष्णवो और वेदान्तियो के साथ शास्त्रार्थ करके विजयी हुये। परिणाम स्वरुप भीम भट्ट, श्याम भट्ट, नवरंग स्वामी जैसे प्रणामी धर्म के महान वि्द्वान प्राप्त हुये। सूरत मे ही कलशवाणी के १२ प्रकरण और ५०४ चौपाइया अवतरित हुई, जिनके माध्यम से महामतिजी ने विश्व मे अखंड शान्ति स्थापित करने के लिए दावे के साथ महासंकल्प किये और विश्व महामंगल कीइ घोषणा की। तब से सूरत प्रणामी समाज मे 'श्री ५ महामंगलपुरी धाम’ के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होने अपने संकल्प को चरितार्थ करने हेतु महाभियान प्रारम्भ किया। तब सूरत से ५०० धर्मप्राण सुन्दरसाथ सर्वस्व समर्पित करके श्रीजी के साथ निकल पदे। अत: सुन्दरसाथ के प्रति अप्रतिम प्रेम दर्शाते हुये वे कलसवाणी मे कहते है :-
हवे दु: ख न देऊंफूल पांखडी, सीतल द्रस्टे जोंऊ ।
सुख सागर मां झीलावी, विकार सघला धोऊं ॥ प्र. १२/२४
श्री ५ महामंगलपुरी धाम विश्व शांति के लिये स्वयं अदभुत, अनुपम एवं क्रान्तिकारी रहा है। जागनी अभियान का प्रमुख केन्द्र और सुन्दरसाथ मिलन का दिव्य प्रेरणा – स्रोत भी रहा है।
श्री महामति जी की महामंगलपुरी धाम मे हुई घोषणा को दोहराते हुए अपने बीतक ग्रन्थ मे स्वामी श्री लालदासजी कहते है:-
तब श्रीजी साहेबजी ने कहा, जो कोई लूला पांगला साथ ।
इन्द्रावती न छेडे तिनको, पहुंचावे पकड हाथ ॥ बी. प्र. ३१/२१
सदगुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज का आदेश – संदेश याद दिलाकर उन्होने बिहारीजी को कहा कि जाति – पांति के भेदो को समाज से दूर करके सबको एक सूत्र मे बांधना है और जाति विहीन समाज की रचना करना जरुरी है। जाति विहीन समाज – रचना का सरल मार्ग प्रस्तुत करते हुये वे कहते है:-
जित जो अंकुर निजधाम का, गिनिए ऊंच नीच न तित ।
ए राह श्री देवचन्द्रजी ए कही, आतम द्र्ष्टि कि इत ॥ बी. प्र. ३१/५९
जब श्रीजी ने बिहारीजी को सदगुरुजी के सिद्धांतो के मुताबिक धर्म – जागनी करने के लिए लिखा तो बिहारीजी आग बबूले हो गये और शीघ्र ही श्रीजी को धर्म और साथ मे से वहिष्क्रुत कर दिया। इसी समय सूरत के सुन्दरसाथ ने नि्र्णय लिया कि निजानन्द स्वामी अपनी मूल शक्तियो के साथ श्रीजी के दिल मे विराजमान है। इसलिये श्रीजी को यहा से विश्व जागनी का कार्य कर देना चाहिये। यह सोचकर सुन्दरसाथ ने श्रीजी के चरणो मे प्रार्थना की और भीमभाई के नेत्रुत्व मे श्रीजी को महामंगलपुरी धाम की गादी पर प्रतिष्ठित किया और श्रीजी के साथ श्री बाईजू राजजी को सिंहासन पर बिठाकर भीमभाई और सभी सुन्दरसाथ ने मिलकर “युगल स्वरुप" की आरती उतारी। इस परम पावन द्रुश्य को देखकर नवरंग स्वामी अत्यंत प्रभावित हुये। उसी समय उन्होने परमधाम मे विराजमान साक्षात श्री राजजी महाराज और श्री श्यामाजी महारानी जी के युगल स्वरुप के दर्शन किये और गदगद होकर नाचने लगे तथा उनके मुंह से वाणी नि: स्रुत हुई:-
श्री प्राणनाथ निजमूलपति, श्री मेहेराज सुनाम ।
तेज कुंवरि श्यामा जुगल को, पल पल करुं प्रणाम ॥
इस तरह महामंगलपुरी धाम मे भी परमधाम की आनन्दमयी लीलाए होती रही।
अत: श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म मे श्री ५ महामंगलपुरी धाम की महिमा और माहात्म्य अनुपम, अपूर्व, नित्य और महामंगलमय रही है।
प्राणाधार धर्मप्रेमी सुंदरसाथजी को मेरा कोती कोती प्रेम प्रणाम
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पन्ना का प्राचीन नाम परना है। परना का अर्थ पर अर्थात अन्य और ना का अर्थ नहि होता है। अत: परना का सीधा अर्थ 'अन्य नही' अद्वैत है। श्री मुखवाणी और बीतक ग्रन्थो मे अद्वैत का भाव 'परमधाम' के लिये बार - बार आया है। जैसे :-
जो प्रदक्षिना निजधाम की, सातों सरुप श्री राज ।
सो सारे परना मिने, वास्ते सैयन के सुख काज ॥
अनेक ब्रह्मुनियो ने भी अपनी अपनी रचनाओ मे परना धाम को परमधाम कहा है। श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म के महान संत कवि मस्ताना जी ने भी परना मे ही परमधाम के दर्शन किये। वे अपने पंचक मे लिखते है:-
परना परमधाम देख, करिके परनाम देख ।
इश्क को आराम देख, सकल दु:ख भागे है ॥
महामति श्री प्राणनाथजी श्री बाईजूराज और ५००० सुन्दरसाथ को संग लेकर परना पहुंचे। तब पन्ना के महाराजा छत्रसाल जी ने श्री जी के अन्दर साक्षात श्री राजजी महाराज के और श्री बाईजू राजजी के अन्दर श्री श्यामा महारानी जी के दर्शन किये और कहा कि:-
जानि के मूल धनी अंगना अपनी, सो घर आये हमारे ।
श्री ठकुरानी जी सखियन सुधां, लेकर संग पधारे ॥
महामति श्री प्राणनाथजी परना पहुंचे कि शीघ्र ही उन्हे परमधाम के 'नूरी झण्डे' का स्मरण हो आया और उन्होने जागनी रास का नूरी झण्डा पन्ना मे फहरा कर मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम स्थापित किया। तब सभी सुन्दरसाथ ने परना मे परमधाम की अनुभूती कि और 'धाम के धनी की जय' का गगनभेदी नारा लगाया।
श्रीजी सुन्दरसाथ के स्वामी है। अत: उन्होने क्यामतनामा ग्रन्थ मे कहा है :-
इन देहुरी के सब चूमसी खाक, सिरदार मेहेरबान दिल पाक ।
परना में ही श्री मुखवाणी के खुलासा, खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिनगार, मारफत सागर आदि ग्रन्थो का अवतरण हुआ। दिव्य परमधाम की गली गली की जानकारी सभी को हुई तथा तारतम ज्ञानरुपी नूरी झण्डे का दिव्य प्रकाश परमधाम तक पहुंचा। अत: कहा गया है:-
झण्डा पोहोंच्या अरस अजीम लग,
देखाए हक बडा अरस तमाम ।
श्री मुखवाणी मे जागनी रास लीला के अनेक दिव्य प्रसंगो का मंगलमय वर्णन है, जिसमे भी मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम की अलौकीक, अनुपम एवं असीम महिमा का पावन वर्णन मिलता है। स्वामी श्री लाल्दासजी ने भी अपनी बीतक मे परमधाम मे जो अष्ट प्रहर की दिव्य लीलाये होती है तद्नुसार ११ वर्ष तक पन्ना मे अष्ट प्रहर की लीलाओ का साक्षात अनुपम वर्णन कर पन्ना को परमधाम स्वरुप सिद्ध किया है।
मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावती पूरी धाम की जागनी रास लीला नित्य और निरन्तर होती रहती है। अत: श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म मे पदमावती पुरी धाम का महत्त्व अनन्त, असीम, अपूर्व, अखंड और परम पावनकारी है। इस पुण्य धाम को ब्रह्मुनियो ने जागनी रास का मुलमिलावा कहा है। अत: इस पुरी का महत्व अन्य पुरिपो से अधिक है। शास्त्रो मे इसी पावन धाम को जगज्जीवो की मुक्ति का स्थन माना है।
श्री तारतम मंत्र के अवरण और पूर्णब्रह्म श्री प्राणनाथजी के प्राकट्य मात्र से श्री ५ नवतनपुरी धाम स्वयं नित्य, अखंड, नवतन एवं असीम महिमामय और अपूर्व महिमा मंडित है।
जागनी लीला भूमी और विश्वशान्ति का परम पावन आदेश देने वाली पावन भूमी श्री ५ महामंगलपुरी धाम सुरत भी सदा सर्वदा आनन्द मंगलमयी और अनन्त महिमामयी भूमी के रुप मे अखंड, नित्य एवं परमपावन महिमामंडित है।
अखंड मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावती पुरी धाम परना अनन्त, असीम, अपूर्व, नित्यधाम की शोभा से विभूषित है। सर्वप्रथम नवतनपुरी धाम मे निजानन्द संप्रदाय का बीज उदय हुआ। महामंगलपुरी धाम मे वह बीज बडे व्रुक्ष के रुप मे विकसित हुआ और मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम पन्ना मे इस व्रुक्ष मे अनंत शोभायुक्त मुक्तिदायक मीठे मीठे फल लगे। जिनका आस्वादन कर चराचर धन्य धन्य हुआ ।
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श्री राजजी की लाडली सखीयो को श्री चरनों में बंटी भावसार प्रणामी का प्रेम प्रणाम
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