दुखकी प्यारी प्यारी पीउकी, तुम पूछो वेद पुरान ।
ए दुख मोहिको भला, जो देत हैं अपनी जान ॥ कि. १६/६
इस संसार के स्वार्थमय सुखोंको छोडकर उसके द्वारा उत्पन्न होनेवाले दु:खोंका प्रेम से स्वागत करनेवाली ब्रह्मस्रुष्टि अपने प्रियतम की प्यारी है। वेद, पुराण एवं धर्मग्रन्थ भी इसके साक्षी हैं। इसलिए संसार के ये दु:ख मुझे प्रिय लगते है< क्योंकि प्रियतम धनी मुझे अपनी जानकर एसे दु:ख देते है।
ता कारन दुख देत हैं, दुख बिना नींद न जाए ।
जिन अवसर मेरा पीउ मिले, सो अवसर नींद गमाए ॥ कि. १६/७
इसलिए प्रियतम धनी अपनी प्रिय आत्माओं को दु:ख देते हैं। क्योंकि संसारिक दु:खोंका अनुभव किए बिना अज्ञानरूपी निद्रा दूर नहीं होती। जिन दु:खोंको द्वारा इसी जीवन में प्रियतम का मिलन होता है, एसे अवसर को हम अज्ञानरूपी निद्राके कारण गंवा देते हैं।
प्रेम प्रणाम
आपका सेवक बंटी क्रुष्ण प्रणामी
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