बहुमूल्य मानव शरीर तब प्राप्त होता है जब जीव चौरासी लाख योनियां भटक लेता है, एसी भारतीय दर्शन की मान्यता है। इसलिए इस उपहार को जो मानव शरीर के रूप में उपलब्ध है संसार की नश्वर एवं तुच्छ वस्तुओं के मोह में न गंवा कर अध्ययन, मनन और चितंन का सदुपयोग करें। महामति श्री प्राणनाथ जी की कुलजम वाणी (तारतम सागर) के किरंतन ग्रन्थ का अश्ययन करने से हमें बहुत से बिन्दु मिल जाते हैं। मानव देह को महामति ने बहुमूल्य उपहार बताया है।
मानखे देह अखंड फल पाइये, सो क्यों पाये के व्रुथा गमाइये ।
ये तो अधखिन को अवसर, सो गमावत मांझ नीदर ॥ (कि. ३/२)
इस जीवन को क्षनिक कहा गय है। यहां तक कि 'न जाने इन स्वांस को फिर आवन होय न होय' जो श्वास हम लेते हैं, उसका भी विश्वास नहीं कि बाहर वापस आये या नहीं। इसलिए हमें अमूल्य अवसर मिला है कि इस शरीर से जो अच्छा कार्य हो सके करें, व्यर्थ में समय को सोकर व्यतीत न करें। इस देह से ही परमात्मा के अखंड आनंद को प्राप्त करें। इस मूल्यवान शरीर को प्राप्त कर इसे व्यर्थ नष्ट न करें।
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खिन एक लेहुं लटक भजाए ।
जनमत ही तेरो अंग झूठो, देखत ही मिट जाए ॥ (कि. ४८/१)
जन्म से ही हमारे शरीर के सभी नाशवान हैं। ये सब देखते ही देखते मिट जाएंगे, इस पलभर के जीवनरूपी नाटक में ही उलझ कर न रह जायें। जीवन के एक एक क्षण को स्त्कर्म में लगा दें। इसकी उपयोगिता को समझ कर सुभ विचारों से भर दें.।
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एक खिन न पाइये सिरसाटे, कै मोहरों पदमो करोड ।
पल एक जाये इन समे की, कछु न आवे इनकी जोड ॥ (कि. ७८/३)
सिर दे देने पर भी अर्थात अपना सर्वस्व समर्पित कर लाखों करोडो मोहरें लुटा देने पर भी अमूल्य जीवन का एक क्षण लौटाया या बचाया नहीं जा सकता। एसे अमूल्य जीवन का एक भी पल अगर व्यर्थ चला जाता है तो उसके बराबर हनि संसार में कोई नहीं।
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